Article 370 Verdict : आज जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के खिलाफ आएगा फैसला, केन्द्र के फैसले को दी गई थी चुनौती
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाएगा। अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ फैसला सुनाने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ समेत पांच जज बैठ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ जिसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं, आज फैसला सुनाएगी। कुल मिलाकर तीन फैसले सुनाए जाएंगे। देशभर की निगाहें इस बात पर टिकी हुई हैं कि आज सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला होने वाला है. इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के आगे का भविष्य भी तय होने वाला है.
सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिन की बहस के बाद 5 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों और केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य की दलीलों को सुना था। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने आरोप लगाया कि घाटी के नेताओं को हाउस अरेस्ट किया गया है। महबूबा मुफ्ती के भी हाउस अरेस्ट किए जाने की बात सामने आई। हालांकि, अब पुलिस ने इन बातों को खारिज कर दिया है. श्रीनगर पुलिस ने कहा है कि किसी भी नेता को हाउस अरेस्ट नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि , केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का ऐलान किया था। इसके साथ ही राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था। इसके लिए सरकार की तरफ से ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून’, 2019 लाया गया था, जिसे ही चुनौती दी गई है। जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से अभी तक वहां पर विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं. हालांकि, हाल के दिनों में स्थानीय चुनाव जरूर हुए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दिए ये तर्क :
दरअसल, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं 2019 में संविधान पीठ को भेजी गईं थीं। इन याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 को शुरू में अस्थायी माना गया था, लेकिन वो जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद स्थायी हो गया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि संसद के पास अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए खुद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित करने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने आर्टिकल 370 के क्लौज़ 3 का जिक्र करते हुए कहा कि इसे हटाने के लिए संविधान सभा की सिफारिश महत्वपूर्ण थी। संविधान सभा की मंजूरी के बिना इसे निरस्त नहीं किया जा सकता।
केंद्र सरकार ने दिए ये जवाब :
इस केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से कई सवाल पूछे। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब जम्मू-कश्मीर में कोई संविधान सभा मौजूद नहीं हो तो क्या उसकी सहमति ऐसा कदम उठाने से पहले जरूरी होती है और अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है? इस पर केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना संवैधानिक फ्रॉड नहीं था। इसे कानूनी ढांचे के अनुरूप हटाया गया था। केंद्र ने तर्क दिया कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय अन्य रियासतों की तरह एक प्रक्रिया से हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि जो प्रावधान अस्थाई था, वह 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद स्थायी कैसे हो सकता है? केंद्र सरकार ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति अस्थायी है और वह राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है।